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जब शहडोल के सरदार पटेल नगर की श्रीमती सियादुलारी पटेल ने छः साल पहले अपने परिवार की एक एकड़ जमीन पर जड़ी-बूटियों की खेती करने का फैसला किया, तो उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि वे अन्य किसानों के लिए भी ऐसी खेती-बाड़ी की राह खोल रही हैं और तमाम लोगों के लिए रोजगार की व्यवस्था भी कर रही हैं। उन्हें पता था, राह आसान नहीं है। शहडोल में पंसारी बाजार में जड़ी-बूटी बेचने से लेकर जिले के बाहर जड़ी-बूटी का निर्यात करने वालों तक संभावित कारोबारी सहयोगियों को जोड़ने के अलावा उन्हें पति श्री आर.के. पटेल को राजी करना था। उन्होंने सिया रोज गार्डेन एण्ड मेडिसिनल प्लान्टेशन समिति की स्थापना की। इसके तहत उन्होंने न सिर्फ नर्सरी में तैयार औषधीय और फलों व फूलों के पौधों की स्थानीय स्तर पर और खेत से तोड़ी गई जड़ी-बूटियों को शहडोल सहित कटनी, जबलपुर, रीवा, भोपाल, सीधी, उमरिया और दिल्ली में विशेष अनुकूलित जड़ी-बूटियों की दुकानों पर बेचने के लिए आपूर्ति श्रृंखला तैयार की। अपनी उद्यमशीलता की बदौलत उन्होंने जड़ी-बूटी खाद्य प्रसंस्करण उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा और अब वे शहडोल जिले में जड़ी-बूटी का उत्पादन कर सालाना चार-पांच लाख रूपये कमा रही हैं।

सियादुलारी के लिए यह कोई आसान काम नहीं था। उनके पति शासकीय कर्मी है और उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। एक रोज उनके दिमाग में जड़ी-बूटियों की खेती का विचार कौंधा और चन्द दिनों के भीतर उन्होंने एक बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड ले लिया। राज्य सरकार की मदद से तकनीकी मार्गदर्शन से लेकर सिंचाई हेतु एक ट्यूबवेल, स्प्रिंकलर, बीज, नाडेप एवं अन्य कृषि उपकरणों की व्यवस्था की गई। इस तरह एक विचार ने मूर्तरूप लिया। आज उनके जड़ी-बूटी खाद्य प्रसंस्करण दिल्ली तक जाते हैं। खास बात यह कि वे जड़ी-बूटियों की खेती में सिर्फ जैविक खाद का ही इस्तेमाल करती हैं, क्योंकि इसी से उनके गुण बरकरार रह सकते हैं। आज वह दस एकड़ जमीन पर जड़ी-बूटियों का उत्पादन ले रही हैं और तमाम लोगों को रोजगार दे रही हैं।

प्रदेश में जहां जड़ी-बूटी की पैदावार में सियादुलारी की बदौलत शहडोल जिले का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वहीं जड़ी-बूटी की खेती और इनके खाद्य प्रसंस्करण का प्रयोग सफल रहने से भविष्य में जड़ी-बूटी की पैदावार से किसानों को आर्थिक रूप से खड़े होने में मदद मिलेगी। सियादुलारी ने विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों के बीच जड़ी-बूटियों और अन्यानेक औषधीय पौधों की सफल पैदावार करके यह साबित कर दिया है कि शहडोल जिले के किसान भविष्य में जड़ी-बूटी उत्पादन के क्षेत्र में विशेष पहचान बना सकते हैं। सियादुलारी पटेल जड़ी-बूटियों का व्यापक पैमाने पर रोपण कर शहडोल जिले की पहचान अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर कायम करना चाहती हैं। इस व्यावसाय से जोड़ने के लिए किसानों को भी प्रेरित कर रही हैं और अगर इस आदिवासी बहुल क्षेत्र में जड़ी-बूटियों की खेती शुरू हो जाती है, तो इसमें यहां के वाशिंदों और आदिवासियों को रोजगार मिलने के साथ ही उनके जीवन यापन का जरिया भी बढ़ेगा। सियादुलारी अपने खेतों में सफेद मूसली, शतावर, ग्वारपाठा, अश्वगंधा, सर्पगंधा, बच, नागरमोथा, आंवला, तीनों प्रकार की हल्दी, अदरक, क्वांच समेत करीब पच्चीस प्रकार की जड़ी- बूटियां उगाती हैं। वे अपने फोन पर आर्डर बुक करती हैं।

सियादुलारी ने अपने पति का आर्थिक संबल बनते हुए अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाई, मकान बनवाया, जमीन खरीदी, मोटर सायकल खरीदी और एक बच्चे की शादी भी कर दी। जड़ी-बूटियों की खेती ने उनके परिवार का जीवन ही बदल दिया। सियादुलारी का मानना है कि क्षेत्र के अगर अन्य किसान भी बड़े पैमाने पर जड़ी-बूटी की खेती करें, तो क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। विदेशों को जड़ी-बूटियों का निर्यात करने वाली दिल्ली की एक नामचीन कम्पनी भी सियादुलारी की जड़ी-बूटियों की ओर आकर्षित हुई है। उन्होंने अब तक औषधीय शोभायमान एवं फल व फूलों के पौधों की नर्सरी भी शुरू की है। सियादुलारी गर्व से कहती हैं, ”मैनें सीमित संसाधनों और कम जमीन से खेती की शुरूआत की थी। आज मेरी खेती का रकबा कई गुना बढ़ गया है और परिवार की गुजर-बसर अच्छी तरह चल रही है।”